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मौन रहकर भी -------

मौन रहकर भी -------

मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,
दर्द चेहरे से बयां वो हो रहा है।
सोचा था जिऊँगा खुशहाल होकर,
तन्हा जीवन आज बोझिल हो रहा है।
उम्र गुजरी सोचा नहीं मैंने कभी कुछ,
जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है।
साथ थे मेरे हजारों हम सफ़र,
आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है?
मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ,
पतझड़ सा यौवन, उजड़ा आँगन हो रहा है।
आँसू नहीं बहते मेरी आँख से अब,
राजे दिल कौन फिर खोल रहा है?

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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