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डूबता सूरज

डूबता सूरज

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
यह डूबता सूर्य कितना सुंदर है
देखो ना सुनहरी आभा को
जो बिखर रही है उसके चारो तरफ
जैसे कह रही हों
मेरे ताप पर न जाना
मैं भीतर से यही हूं
शांत स्निग्ध शहद का रंग समेटे
मीठा सा मन को हरने वाला
कभी मुझे देखने का प्रयास तो करो
मेरा यह रूप मेरी यह आभा
सब हैं सिर्फ तुम्हारे लिए
पूछो उस विहग से जो
लौटा है नभ को चूमकर
दुनियां घूम कर चोंच में दाने लिए
फिर से अपने नन्हें के पास
रात की रानी से बतियाने
रुकी पवन से गप शप की चाह में
चूं चूं करते चूजों को सहलाने
या पूछ लो निशा की आहट से
जो मेरे छिपने की बाट जोह रही
उसका भी अपना वक्त है
मैं पर वापस लौट के आऊंगा
यह भी शाश्वत सत्य है
आशाओं को बनाए रखना
निराशा को घर न करने देना
प्रखर प्रदिप्त ताप से पा संजीवनी
फिर बहार झूमेगी खुलकर
श्रृष्टि का है क्रम यही
उत्थान अवसान सभी नियति
इसी आस की डोर को पुचकार कर
निराशा नाउम्मीदी की गर्द झाड़कर
फिर नया विहान आएगा
फिर नया विहान आएगा- 
मनोज कुमार मिश्र
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