जो कह ना सके.
इंदिरा शर्मा...
जो कह ना सके.. वो बात हो तुम आंखों में बसा .. इक ख़्वाब हो तुम
दिल का ख़ास .. अरमान हो तुम
ओ अजनबी .. अदृश्य आभास हो तुम..
एक अनकहा .. एहसास हो तुम
रिश्ता नहीं पर .. एक नाम हो तुम
सारथी नहीं .. सखा कृष्ण सा हो तुम
बेचैन दिल का .. सुकून ए करार हो तुम
ओ अजनबी .. अदृश्य आभास हो तुम..
दूर बैठे .. अ स्पृश्य साथ हो तुम
जीवन में एक ..सुंदर भाव हो तुम
मेरी कल्पना के ..शहंशाह हो तुम
मेरी कविता का .. सारांश हो तुम
ओ अजनबी.. अदृश्य आभास हो तुम..
हां केवल .. इक आभास हो तुम..
इंदिरा शर्मा...
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