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मेरी प्रेरणा हो

मेरी प्रेरणा हो

तुझको देख कर मुझको
कुछ कुछ होने लगता है।
नशा आँखो आँखो के
मिलने से चढ़ने लगता है।
करें तो करें क्या हम
अब तू ही बता दे।
मोहब्बत की ज्योत तू
अब दिल में जगा दे।।


हाल मेरा सुनाता हूँ
मन की बात बताता हूँ।
न सोता हूँ न जगता हूँ
यादों में खोया रहता हूँ।
पलक झपकते आते हो
सपनो में ले जाते हो।
सेर जन्नत की कराते हो
प्यार ही प्यार बहाते हो।।


वदन तुम्हारा चन्दन सा
महका रहा है जन्नत को।
चाँद सितारे भी देखो
बिखेर रहे है चाँदनी को।
वीणा भी स्वर छेड़ रही
नाच रही है अप्सराये जो।
देख के तुझको जन्नत में
झूम उठी है जन्नत जो।।


रूप तुम्हारा सुंदर है
बोल तुम्हारे मीठे है।
चाल तुम्हारी सुहानी है
छम छम करके चलती हो।
मृगनैनी सी चंचल हो
सबके दिलों में बसती हो।
इसलिए तो संजय की
लिखने की तुम प्रेरणा हो।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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