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वर्तमान माँ का दौर

वर्तमान माँ का दौर

वो दौर कुछ और था जब माँ की गोद थी,
सुनते ही आवाज़ वो दौड़ी चली आती थी।

लग गई चोट यदि कहीं मेरे पाँव में,
आँसू की धार माँ की आँख से आती थी।

जागने पर मेरे रात में, वो खुद जाग जाती थी,
गीले में खुद सोती, मुझे सूखे में सुलाती थी।

आज के दौर की यारों, बात कुछ और है,
माँ के लिए बच्चा नहीं, ख़ास कुछ और है।

उठाती नहीं माँ आजकल, गोद में उसको,
कपडे खराब हो जायेंगे, यह नयी सोच है।

तडफता है बच्चा गर दर्द और चोट से कहीं,
भेजती डॉक्टर के, प्यार से सहलाती नहीं है।

लगता है डर उसे छुआछुत और संक्रमण का,
छोड़ती देखभाल को, नही नौकरों की कमी है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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