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अभी अभी तो मंजरी आई रसाल-डाल पर

अभी अभी तो मंजरी आई रसाल-डाल पर

ज्योतीन्द्र मिश्र
अभी अभी तो मंजरी आई रसाल-डाल पर
अभी अभी तो चढ़ गया गुलाल गाल गाल पर
अभी अभी समाई है सांस में ताजा हवा
अभी अभी किरण किरण उतराई ताल ताल पर
जब तलक है ताजगी बहार के सिंगार में
अभी कहीं न जाऊँगा ,अभी कहीं न जाऊँगा
*
अभी अभी दिखी अरण्य आग सी गुलमोहर
अभी अभी दिखी अमलतास की चुनर
अभी अभी सुनी गई , पलाश का रंग - राग
अभी अभी तो सांकलें हिला गया है दोपहर
जब तलक वसंत का संत है डटा हुआ
अभी कहीं न जाऊँगा, अभी कहीं न जाऊँगा
*
अभी अभी तो तितलियों को मिला पराग है
अभी अभी तो जागा , भँवरों का भाग है
आया है आंगन में, बरस बाद पाहुन
अभी तो कोने कोने में जल उठा चिराग है
जब तलक चिराग में रहेगी तेल बाती
अभी कहीं न जाऊँगा ,अभी कहीं न जाऊंगा
*
अभी अभी तो धूप ने रूप का चखा है स्वाद
अभी अभी तो चांदनी का घर हुआ है आबाद
तरस तरस चली गई जो दूर बहुत वंजारिन
अभी अभी हरसिंगार ने दिला दिया है याद
जब तलक झरते रहेंगे , फूल हरसिंगार के
अभी कहीं न जाऊँगा, अभी कहीं न जाऊँगा
*
अभी अभी तो जिंदगी से हुआ ,दुआ सलाम
अभी अभी तो इंतज़ार से मिला आराम
देखा है फिर से आईने में खुद को बार बार
अभी अभी तो आया है उम्र का पैगाम
जब तलक है रू ब रू शफ्फाक आईना
अभी कहीं न जाऊँगा , अभी कहीं न जाऊँगा
ज्योतीन्द्र मिश्र
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