विज्ञान भवन नई दिल्ली में "नेशनल आयुष कॉन्फ्रेंस" आयोजित
- आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा द्वारा आयुष को आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान की हुई प्रशंसा ।
उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
आयुष्मान और इंटीग्रेटेड आयुष काउन्सिल के संयुक्त तत्वावधान द्वारा दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में "नेशनल आयुष सम्मेलन" का आयोजन किया गया। उक्त अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों के भिन्न-भिन्न जिलों से प्रतिनिधियों ने भाग लिया I सम्मेलन का विषय "विकसित भारत का आधार - आयुष से आरोग्य" रखा गया था। आयुष, आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों का प्रतिनिधित्व करता है। यह न केवल रोगों का इलाज करता है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। भारत, जो अपने प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के लिए मशहूर है, आज एक स्वस्थ और समृद्ध देश की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र की शुरुआत में राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन के संयोजक डॉ. बिपिन कुमार ने विशिष्ट अतिथियों का स्वागत करते हुए वर्तमान परिदृश्य में आयुष की महता के संबंध में विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज आयुष का महत्व बढ़ा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत को प्रशिक्षित आयुष सहायकों की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे अपनी प्राचीन उपचार पद्धति को दुनिया तक पहुंचा जा सके। उन्होंने उपस्थित सभी श्रोताओं से यह संकल्प लेने को कहा कि वे आयुष के संदेश को लोगों तक पहुचाएं। आयुष संबर्द्धन के लिए डॉ बिपिन कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का धन्यवाद किया, साथ ही आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनके प्रयासों के फलस्वरूप, आयुष भारत और विदेशों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। आयुष स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और पहुंच में वृद्धि हुई है और आयुष शिक्षा और अनुसंधान को मजबूती मिली है। इसके पश्चात मंच पर उपस्थित सभी सम्मानित सदस्यों को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिल्ली के सचिव स्वामी सर्वलोकनंद जी महाराज एवं वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक श्री रवि कुमार अय्यर ने अपने विचार रखे। स्वामी सर्वलोकनंद जी ने आयुष की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए आयुर्वेदिक-योग चिकित्सा पद्धति की प्रसंशा की। उन्होंने सुदूर आदिवासी एवं पहाड़ी इलाकों में पाये जाने वाले औषिधीय भंडार की चर्चा की। स्वामी सर्वलोकनंद जी ने निराशा प्रकट की कि इस भंडार का सही उपयोग नहीं किया गया हैं। आज वर्तमान सरकार ने इस दिशा में सार्थक पहल की है। नये तरीकों, नई पद्धतियों पर चिंतन हो रहा है। आज दुनिया भर के लोग भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति से जुड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष पद्धति का निरंतर विकास हो रहा है। वर्तमान सरकार तमाम आसान सुविधाएं उपलब्ध करा रही है।
वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक रवि कुमार अय्यर ने आयुर्वेद एवं होम्योपैथी के महत्व पर जोर डालते हुए मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना की प्रसंशा करते हुए कहा कि आज गरीब से गरीब व्यक्ति भी मुफ्त इलाज करा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ शरीर से स्वस्थ मन और स्वस्थ मन से स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है।
उन्होंने जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण के संबंध में ग्रामीण अंचलों के बड़े रोचक उदाहरणों से प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय त्योहारों और सांस्कृतिक उत्सवों को मानने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों की रोचक जानकारी दी। रवि कुमार अय्यर ने खानपान और मन के संयम को आज के समय की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि सादा जीवन, जीवन का आधार होना चाहिए। साथ ही उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज उपभोक्तावादी समाज में बुजुर्ग बेहद अकेला हुआ है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एवं होम्योपैथी आज के चिकित्सा विज्ञान का आधार है, हमें पुनः इस ओर विचार करना है। उन्होंने भारत सरकार के प्रयासों की भूरि भूरि प्रसंशा की। श्री रवि कुमार अय्यर ने इस दौरान भारत सरकार की कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजनाओं का जिक्र किया, जिनमें आयुष्मान भारत एवं तालाबों की स्वच्छता की 'अमृतसरोवर परियोजना' प्रमुख हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत सरकार के अपर सचिव शांतमनु ने कहा कि आयुर्वेद हो या योग एवं आयुष चिकित्सा पद्धति के समस्त आयाम, हमारी एक ऐसी धरोहर हैं, जिसे अपने जीवन में आत्मसात कर जीवन की श्रेष्ठता को हासिल कर सकते हैं। इन पद्धतियों में जीवन की समृद्धता को भंडार है और आज वैश्विक दृष्टिकोण में हमारी एक अनूठी पहचान भी बन चुकी है। यह चिकित्सा प्रणाली न केवल चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को रोजगार का मौका देती है, बल्कि परंपरागत चिकित्सा के क्षेत्र में भी नौकरियों का अवसर प्रदान किया है। विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद इंटीग्रेटेड आयुष काउन्सिल के अध्यक्ष एवं प्रख्यात चिकित्सक डॉ. सृष्टा नड्डा ने प्राचीन चिकित्सा पद्धति एवं आयुर्वेदाचार्यों की बात करते हुए उस पद्धति को वर्तमान शिक्षा पद्धति से जोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने पर्यावरण-शिक्षा के महत्व को आज की ज़रूरत बताया और सांख्य दर्शन के प्रकृति एवं पुरुष पर बात की। उनके अनुसार प्राचीन शिक्षा पद्धति आज की ज़रूरत है।
कार्यक्रम में लेडी हार्डिंग अस्पताल के निदेशक डॉ. सुभाष गिरी ने अपनी प्रस्तुति में उस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि भारत हृदय रोगियों का गढ़ है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही भारत इससे मुक्त होगा। उन्होंने हृदय रोग से बचने के अनेक तरीके बताये। उन्होंने बताया कि हृदय रोग की सबसे बड़ी वजह नकारात्मक तनाव है। कार्यशैली में बदलाव से हम हृदय रोग से बच सकते हैं।
दोपहर के भोजन के बाद के सत्र का मंच एम्स के कार्डीऑलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष पद्मश्री डॉ. सुभाष चंद मनचंदा ने किया। इस सत्र में डॉ. अखिलेश शर्मा, डॉ.अपर्णा रॉय, श्रीमती अरुणिमा सिन्हा (मेरु चिकित्सक) ने अपनी बात रखी। डॉ.अखिलेश ने विदेशों में भारतीय आयुर्वेद पद्धति के महत्व पर बात की। डॉ. अपर्णा रॉय ने अरविंद दर्शन को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी माना। श्रीमती अरुणिमा सिन्हा ने उपस्थित श्रोताओं को मेडिटेशन कराया। पद्मश्री डॉ. सुभाष चंद मनचंदा ने निरोगी जीवन के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
नेशनल आयुष कांफ्रेंस के पहले दिन के सफल आयोजन के बाद दूसरे दिन के पहले सत्र का उद्घाटन राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन के संयोजक डॉ. बिपिन कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। इस सत्र में उन्होंने अपने वक्तव्य में कार्य और परिवार के बीच संतुलन की आवश्यकता को बेहद जरूरी माना। उन्होंने कार्यस्थल पर तनावमुक्त जीवन शैली पर प्रकाश डाला।
इसी सत्र में प्रख्यात मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. बिश्वरूप रॉय चौधरी ने अपने अंदाज़ में अपने विषय की शुरुआत की। उन्होंने 'स्यूडो इलनेस' पर बात रखी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में कहा कि बीमारी से ज्यादा 'बीमारी का भ्रम' व्यक्ति को मारता है। हमारा समाज इन भ्रामक बीमारियों से ग्रसित है। उन्होंने कोरोना और मंकीपोक्स जैसी बीमारियों को लेकर विश्व संस्थाओं के नज़रिए को तथ्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने लोगों को एलोपैथी की बजाय नेचुरोपैथी की तरफ जाने का सुझाव दिया। उन्होंने अपने रिसर्च सेंटर में किये कोरोना संबंधी खोजों के कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किये। इस संबंध में उन्होंने अपनी पुस्तक 'नेकेड ट्रुथ ऑफ कोविड टेस्ट' पढ़ने की सलाह दी।
सत्र में पद्माभूषण वैद्य देवेंद्र त्रिगुना अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अथर्ववेद में वर्णित पंचतत्व ही जीवन की आधारशिला है। डॉ. त्रिगुना के अनुसार पूरा बृह्मांड इन्हीं पंचतत्वों से बना है। उनका मानना है कि शरीर इन पंचतत्वों के संतुलन से ही स्वस्थ रह सकता है और अनुशासन से ही इस संतुलन को बनाये रखा जा सकता है।
मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. सृष्टा नड्डा ने आयुष पद्धति से मधुमेह रोग के उपचार की सलाह दी और उसके महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने तनाव को मधुमेह का सबसे बड़ा कारण बताया।
आइ .सी .एम.आर. की डॉ. नीता कुमार ने इस सत्र का सफलतापूर्वक संचालन किया।डॉ. बिपिन कुमार ने मंच पर उपस्थित सभी वक्ताओं को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
समापन सत्र में ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति प्रियरंजन त्रिवेदी, इंदिरा गांधी प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलाधिपति मार्कण्डेय राय, इंटीग्रेटेड आयुष काउन्सिल के अध्यक्ष डॉ. सृष्टा नड्डा, लेडी हार्डिंग अस्पताल के निदेशक डॉ॰ सुभाष गिरी, इंटीग्रेटेड आयुष काउन्सिल के उपाध्यक्ष प्रो बी एन पांडे और संयोजक डॉ. उमेश शर्मा जैसे कई गणमान्यों की उपस्थिति थी ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रियरंजन त्रिवेदी ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि महामारी केवल आज की समस्या नहीं है। त्रिवेदी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रशंसा की उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर प्रस्तुत की। इसके लिए उन्होंने किसानों और वैज्ञानिकों के योगदान की भी खूब प्रशंसा की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर भी बात की। आयुष के महत्व पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विस्मृति का इलाज आयुष विज्ञान में उपलब्ध है। उन्होंने डॉ. बिपिन कुमार को इस प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए विशेष धन्यवाद दिया। मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद इंदिरा गांधी प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री मार्कण्डेय राय ने शुक्राचार्य के उस श्लोक से अपनी बात की शुरुआत की, जिसमें औषधिय महत्व के बारे में बताया गया है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में आयुष के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों के लिए अपनी संस्था के योगदान की प्रशंसा की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ सुभाष गिरी ने मंच से बोलते हुए कहा कि आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम विधा है। इसे आगे बढ़ाना हमारा दायित्व है। उन कमियों को दूर करें, जिनसे इनकी प्रगति बाधित हुई है। उन्होंने मानसिक-
सामाजिक-पर्यावरणीय स्वास्थ्य की वक़ालत की। डॉ. ब्रह्मानंद पांडेय जी ने कार्यक्रम के सफल आयोजन और हिंदी भाषा और आयुष के प्रति समर्पण के लिए डॉ. बिपिन कुमार का विशेष धन्यवाद किया। उन्होंने धारणाओं को दूर करने, आयुष चिकित्सा पद्धतियों में शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने, आयुष चिकित्सा पद्धतियों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना करने, आयुष चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने, आयुष चिकित्सा पद्धतियों के लिए सरकारी सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करने जैसे कई मुद्दों पर विमर्श किया गया।
सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य है लोगों को वयस्थ जीवनशैली की प्रेरणा देना, जिसमें वे आयुर्वेदिक और योग का सही तरीके से लाभ उठा सके। इसके अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों, स्कूलों और समुदायों में आयुष चिकित्सा केंद्रों की स्थापना करने का लक्ष्य है, ताकि लोग इस सांस्कृतिक धरोहर को सीख सकें और इसे अपना सके।
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