विवाह


विवाह

प्रथम महोत्सव जन्म महोत्सव ,
द्वितीय महोत्सव होता विवाह ।
दो आत्माओं का बंधन है होता ,
विवाह शादी या कहें निकाह ।।
विवाह जीवन हर्षित है करता ,
विवाह में मिलता विशेष वाह ।
विवाह तभी यह सार्थक होता ,
जब न निकलें मुख से आह ।।
तभी जीवन है सार्थक होता ,
तभी होता सुखमय है जीवन ।
दोनों बनते एक दूजे की नाड़ी ,
प्राप्त होता तब नवजीवन ।।
दोनों एक दूजे की नाड़ी बने ,
दोनों एक दूजे के हैं धड़कन ।
दोनों एक दूजे पे न्यौछावर करे ,
दोनों करे इक दूजे को अर्पण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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