क्यों मुफ्त माल की बात करें,
क्यों कर्जे सबके माफ करें?कोई आधार बता दे इसका,
क्यों भिखारियों का उत्पाद करें?
मुफ्त माल को हक मान लिया,
कर्जे लेने का अभियान किया।
लेकर देना अब अपनी रीत नहीं,
सरकारों ने ऐसा भान दिया।
मुफ्त का अभियान देश में चला जब से,
दलालों का भी काम देश में चला तब से।
संयुक्त परिवार लाभ की खातिर टूट गये,
मुफ्त आवास चलन देश में चला जब से।
अस्सी करोड़ लोग मुफ्त राशन पा रहे देश में,
लगता सारे भूखे हो गये इकट्ठे अपने ही देश में।
गरीब मजदूर ढूँढें नहीं मिलते कृषि व मनरेगा को,
नहीं मिलते निर्माण मजदूर आजकल भारत देश में।
रोजगार का मतलब बस सरकारी नौकरी,
समझौता कुछ भी करवाती सरकारी नौकरी।
बेच खेत खलिहान दौड़ लगाई शहर की ओर,
पीढ़ियां तर जाती मिल जाए सरकारी नौकरी।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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