हक़ जताती स्त्रियां

हक़ जताती स्त्रियां

कहते हैं स्त्रियां बहुत जल्द हावी हो जाती हैं,
बात बात में हक़ जताती हैं।
यों तो हक़ जीवन का साँसों पर भी नहीं,
लेकिन हाँ,जिसके लिए स्त्री हो समर्पित ,
वो हक़ वहीं जताती हैं।
तन मन लुटाती हैं परिवार पर,
मकान को घर बनाती हैं।
संतान के लिए दिन रैन जागना,
मन्नतें मांगना ,पूजा पाठ करना।
बच्चों की सफलता पर फूले न समाती हैं ,
उनकी पढ़ाई की खातिर ,जी जान लुटाती हैं
और फिर तेज है ये अपने पिता के जैसा,
गर्व से सबको बताती हैं।
वाकई मूर्ख होती है नारी,
जानती है कुछ नहीं उसका,
फिर भी सब कुछ का दम्भ भरती है।
कुछ ना होता हाथ में उसके पर,
खुद को परिवार का संबल समझती है।
क्यों हक़ जताती हो नारी ?
अधर मौन ही रखो,
नहीं बन सकती तुम अंहकारी पुरुष समान,
अपनी प्रतिभा गौण ही रखो।
मुँह खोलोगी तो मुँहफट कहलाओगी,
विद्रोह की दहक से अस्फुटित शब्द कहाँ से लाओगी?
तुम मृदु वाणी की धात्री मानी जाती,
सुनना तुम्हारा धर्म है।
प्रतिक्रिया की आदत जो अपनाओगी,
इस समाज में सदा तुम ही गलत कहलाओगी।
डॉ रीमा सिन्हा(लखनऊ) स्वरचित
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