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प्रसन्न रहते है

प्रसन्न रहते है

नमन करू में उन सबको
दिया जिन्होंने ज्ञान मुझे। 
तब जाकर बन पाया
पढ़ा लिखा इंसान मैं। 
अपनी बातों को सदा
लिखकर व्यक्त करता हूँ। 
स्नेह प्यार के भावों को 
जन जन तक पहुंचाता हूँ।। 

जब जब देखा जो भी मैंने
तब तब वो मैंने लिखा है। 
लोगों की गलतियों को 
लेखनी में उजागर किया है। 
सुधार जाये शायद मानव
मेरे लेखों को पढ़कर। 
फिर वो भी कहने लगगे 
स्नेह प्यार की परिभाषा।। 

प्यार मोहब्बत से बढ़कर
जग में कोई चीज नहीं। 
समझ सके इंसान अगर तो
इससे बेहतर कुछ और नहीं। 
जो भी मिलता जुलता है 
ऐसे लोगों से यारों। 
हर्षित और प्रसन्नचित होकर
जीते अपना पूरा जीवन।। 

जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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