वीर भगत सिंह
डॉ अवधेश कुमार 'अवध'देख फिरंगी की करतूतें, खून भगत का खौल गया ।
बचपन में ही गोद छोड़कर,माता की जय बोल गया ।।
उसे गुलामी की तस्वीरें, दिल में साला करती थीं ।
सोते - जगते दिन -रातों में, माता आहें भरती थीं ।।
वह किसान का बेटा इक दिन, पिता संग में खेत गया ।
पौध उगाते देख सभी को, विस्मय से कुछ चेत गया ।।
लेकर कुछ तिनके हाथों में, मिट्टी में हँसकर बोता ।
'अंग्रेजों के लिए बो रहा, बंदूकें कहता पोता' ।।
आने वाले निकट समय में, बंदूकें लहरायेंगी ।
खोज खोजकर अंग्रेजों को, सरहद पार भगायेंगी ।।
घर वाले अद्भुत बच्चे को, देख बहुत घबराये थे ।
ध्यान बँटाने हेतु शीघ्र ही, लाख उपाय कराये थे ।।
किन्तु कहाँ सिद्धार्थ बदल पाया कब जग की माया से ।
जब समक्ष हो बड़ी चुनौती, दूर हुए रिषि काया से ।।
वीर भगत निज रूप बदलकर, क्रांति ज्वाल सुलगाया था ।
पर गाँधी की नीति - रीति से, क्षुब्ध कुपित हो आया था ।।
गाँधी का हथियार अहिंसा, तनिक न उसको भाता था ।
बार - बार गालों पर चाँटा, खाना नहीं सुहाता है ।।
मुट्ठी भर सहयोगी पाकर, ऐसे वह हर्षाया था ।
पंच प्रियों को पाकर जैसे, गुरु गोविन्द अघाया था ।।
हर क्रांती की ज्वाला पर, गाँधी तुषार बन जाते थे ।
देश द्रोह के कुछ पोषक तो, लाशों पर इतराते थे ।।
लाल बाल का साथ छूटना, भीतर तक झकझोर गया ।
बिस्मिल शेखर की कुर्बानी, चिंतन को फिर मोड़ गया ।।
मन में भरी आग जनगण तक, धूमिल होकर जाती थी ।
वीर सपूतों की कुर्बानी, निष्फलता ही लाती थी ।।
अपनों के तीखे सवाल नित , दिल को घायल कर जाते ।
बाहर -भीतर के दुश्मन मिल, वीरों को ही मरवाते ।।
इसी समय इरविन आ पहुँचा, वार्ता करने गाँधी से ।
बाल युवा स्तम्भ गिरे थे, गाँधी - इरविन आँधी से ।।
गाँधी- इरविन समझौता इक सोची समझी साजिश थी ।
भारत माता के दामन पर, बहुत घिनौनी साजिश थी ।।
हर सच्चा भारतवासी जो अंग्रेजों पर भारी था ।
गाँधी - नेहरू की आँखों में वह तलवार दुधारी था ।।
किन्तु भगत को अपनी बातें, जन जन तक पहुँचानी थी ।
'क्रांति एक पावन आयुध है' साबित कर दिखलानी थी ।।
सिर्फ क्रांति के बल पर ही, अंग्रेज यहाँ से भागेंगे ।
अभिकर्ता जो पले हुए हैं, अंग्रेजों को त्यागेंगे ।।
इसी हेतु वह वीर असेम्बलि की गरिमा को तोड़ गया ।
अट्टहास के साथ सभा में, बिस्फोटक बम फोड़ गया ।।
ब्रिटिश राज्य की नींव हिली थी, गाँधी - नेहरू रोये थे ।
टूट रहे थे स्वप्न सुनहले, जो अपने हित पोये थे ।।
अंग्रेजी सेना सहमी थी, वीरों के अंगारों से ।
किन्तु भगत था तनिक न विचलित, घिरे हुए गद्दारों से ।।
हनूमान जिस तरह खुशी से, खुद को खुद बँधवाये थे ।
वीर भगत भी स्वेच्छा से ही, ब्रिटिश जेल में आए थे ।।
अस्त्र बनाकर कानूनों को, छद्म रूप गह भेष चला ।
देशभक्ति से भरे सिंह पर, देशद्रोह का केस चला ।।
प्रायोजित निर्णय के चलते, फाँसी का वो दिन आया ।
भारतमाता के आँचल का, एक फूल फिर मुरझाया।।
इंकलाब जयघोष लगाकर, सिंह फाँस को चूम लिया ।
किन्तु विधाता की महिमा से, समय चक्र फिर घूम लिया ।।
वीर मौत को धोखा देकर, कुछ चेहरों को तौल गया ।
नेहरू - गाँधी की मन्शा का, पोल पूर्णत: खोल गया ।।
अंग्रेजी न्यायालय ने फिर, अधिवक्ता बुलवाया था ।
गाँधी - नेहरू ने कठोरता से अवसर ठुकराया था ।।
इंतजार कर न्यायालय ने, पुन: सिंह को टाँग दिया ।
चरखे की डोरी में फँसकर, भगत सिंह ने जान दिया ।।
देश सन्न - स्तब्ध हुआ था, वीर भगत के खोनेे में ।
निष्कंटक गाँधी - नेहरू थे, लगे हुए विष बोने में ।।
अंग्रेजी अफसर की वाणी, हमको बहुत रुलाती है ।
'भगत सिंह की कुर्बानी कुछ भारतीय को भाती है' ।।
उम्र अभी केवल थी तेइस, शौर्य सूर्य सा दमका था ।
भारत से इंग्लैंड तलक वह, गद्दारों को खटका था ।।
धन्य -धन्य वह वीर प्रसूता, जिसने तुमको जाया था ।
धन्य वंश कुल धरा सुपावन, जिसने तुमको पाया था ।।
धन्य समय सूरज चन्दा नभ, धन्य वीरता - परिपाटी ।
धन्य वीर सुखदेव राजगुरु, धन्य चन्द्रशेखर माटी ।।
धन्य नाम बलवंत वीर का, धन्य अवध रचने वाला ।
बलिदानों के सम्मुख तेरे, कौन भला टिकने वाला ।।
किन्तु आज भी तेरे सम्मुख, लज्जा हमको आती है ।
उग्रवाद का सम्बोधन सुन, गाली - सी चुभ जाती है ।।
महिमा मण्डित वे होते हैं, जिन पर देश लजाया था ।
बाप और चाचा बन बैठे, जिसने नाश कराया था ।।
किन्तु समय का चक्र एक दिन, सत्य चित्र दिखलाएगा ।
भगत सिंह के कातिल की सबको पहचान कराएगा ।।
देख शहीदे -आजम की छवि, सारी जनता पूजेगी ।
जिस दिन खोल आँख की पट्टी, सही - गलत को बूझेगी ।।
देश बाँटने वाले उस दिन, अलग- थलग पड़ जाएँगे ।
भारत माता की गोदी में, बैठ भगत इठलाएँगे ।।
डॉ अवधेश कुमार 'अवध'
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बचपन में ही गोद छोड़कर,माता की जय बोल गया ।।
उसे गुलामी की तस्वीरें, दिल में साला करती थीं ।
सोते - जगते दिन -रातों में, माता आहें भरती थीं ।।
वह किसान का बेटा इक दिन, पिता संग में खेत गया ।
पौध उगाते देख सभी को, विस्मय से कुछ चेत गया ।।
लेकर कुछ तिनके हाथों में, मिट्टी में हँसकर बोता ।
'अंग्रेजों के लिए बो रहा, बंदूकें कहता पोता' ।।
आने वाले निकट समय में, बंदूकें लहरायेंगी ।
खोज खोजकर अंग्रेजों को, सरहद पार भगायेंगी ।।
घर वाले अद्भुत बच्चे को, देख बहुत घबराये थे ।
ध्यान बँटाने हेतु शीघ्र ही, लाख उपाय कराये थे ।।
किन्तु कहाँ सिद्धार्थ बदल पाया कब जग की माया से ।
जब समक्ष हो बड़ी चुनौती, दूर हुए रिषि काया से ।।
वीर भगत निज रूप बदलकर, क्रांति ज्वाल सुलगाया था ।
पर गाँधी की नीति - रीति से, क्षुब्ध कुपित हो आया था ।।
गाँधी का हथियार अहिंसा, तनिक न उसको भाता था ।
बार - बार गालों पर चाँटा, खाना नहीं सुहाता है ।।
मुट्ठी भर सहयोगी पाकर, ऐसे वह हर्षाया था ।
पंच प्रियों को पाकर जैसे, गुरु गोविन्द अघाया था ।।
हर क्रांती की ज्वाला पर, गाँधी तुषार बन जाते थे ।
देश द्रोह के कुछ पोषक तो, लाशों पर इतराते थे ।।
लाल बाल का साथ छूटना, भीतर तक झकझोर गया ।
बिस्मिल शेखर की कुर्बानी, चिंतन को फिर मोड़ गया ।।
मन में भरी आग जनगण तक, धूमिल होकर जाती थी ।
वीर सपूतों की कुर्बानी, निष्फलता ही लाती थी ।।
अपनों के तीखे सवाल नित , दिल को घायल कर जाते ।
बाहर -भीतर के दुश्मन मिल, वीरों को ही मरवाते ।।
इसी समय इरविन आ पहुँचा, वार्ता करने गाँधी से ।
बाल युवा स्तम्भ गिरे थे, गाँधी - इरविन आँधी से ।।
गाँधी- इरविन समझौता इक सोची समझी साजिश थी ।
भारत माता के दामन पर, बहुत घिनौनी साजिश थी ।।
हर सच्चा भारतवासी जो अंग्रेजों पर भारी था ।
गाँधी - नेहरू की आँखों में वह तलवार दुधारी था ।।
किन्तु भगत को अपनी बातें, जन जन तक पहुँचानी थी ।
'क्रांति एक पावन आयुध है' साबित कर दिखलानी थी ।।
सिर्फ क्रांति के बल पर ही, अंग्रेज यहाँ से भागेंगे ।
अभिकर्ता जो पले हुए हैं, अंग्रेजों को त्यागेंगे ।।
इसी हेतु वह वीर असेम्बलि की गरिमा को तोड़ गया ।
अट्टहास के साथ सभा में, बिस्फोटक बम फोड़ गया ।।
ब्रिटिश राज्य की नींव हिली थी, गाँधी - नेहरू रोये थे ।
टूट रहे थे स्वप्न सुनहले, जो अपने हित पोये थे ।।
अंग्रेजी सेना सहमी थी, वीरों के अंगारों से ।
किन्तु भगत था तनिक न विचलित, घिरे हुए गद्दारों से ।।
हनूमान जिस तरह खुशी से, खुद को खुद बँधवाये थे ।
वीर भगत भी स्वेच्छा से ही, ब्रिटिश जेल में आए थे ।।
अस्त्र बनाकर कानूनों को, छद्म रूप गह भेष चला ।
देशभक्ति से भरे सिंह पर, देशद्रोह का केस चला ।।
प्रायोजित निर्णय के चलते, फाँसी का वो दिन आया ।
भारतमाता के आँचल का, एक फूल फिर मुरझाया।।
इंकलाब जयघोष लगाकर, सिंह फाँस को चूम लिया ।
किन्तु विधाता की महिमा से, समय चक्र फिर घूम लिया ।।
वीर मौत को धोखा देकर, कुछ चेहरों को तौल गया ।
नेहरू - गाँधी की मन्शा का, पोल पूर्णत: खोल गया ।।
अंग्रेजी न्यायालय ने फिर, अधिवक्ता बुलवाया था ।
गाँधी - नेहरू ने कठोरता से अवसर ठुकराया था ।।
इंतजार कर न्यायालय ने, पुन: सिंह को टाँग दिया ।
चरखे की डोरी में फँसकर, भगत सिंह ने जान दिया ।।
देश सन्न - स्तब्ध हुआ था, वीर भगत के खोनेे में ।
निष्कंटक गाँधी - नेहरू थे, लगे हुए विष बोने में ।।
अंग्रेजी अफसर की वाणी, हमको बहुत रुलाती है ।
'भगत सिंह की कुर्बानी कुछ भारतीय को भाती है' ।।
उम्र अभी केवल थी तेइस, शौर्य सूर्य सा दमका था ।
भारत से इंग्लैंड तलक वह, गद्दारों को खटका था ।।
धन्य -धन्य वह वीर प्रसूता, जिसने तुमको जाया था ।
धन्य वंश कुल धरा सुपावन, जिसने तुमको पाया था ।।
धन्य समय सूरज चन्दा नभ, धन्य वीरता - परिपाटी ।
धन्य वीर सुखदेव राजगुरु, धन्य चन्द्रशेखर माटी ।।
धन्य नाम बलवंत वीर का, धन्य अवध रचने वाला ।
बलिदानों के सम्मुख तेरे, कौन भला टिकने वाला ।।
किन्तु आज भी तेरे सम्मुख, लज्जा हमको आती है ।
उग्रवाद का सम्बोधन सुन, गाली - सी चुभ जाती है ।।
महिमा मण्डित वे होते हैं, जिन पर देश लजाया था ।
बाप और चाचा बन बैठे, जिसने नाश कराया था ।।
किन्तु समय का चक्र एक दिन, सत्य चित्र दिखलाएगा ।
भगत सिंह के कातिल की सबको पहचान कराएगा ।।
देख शहीदे -आजम की छवि, सारी जनता पूजेगी ।
जिस दिन खोल आँख की पट्टी, सही - गलत को बूझेगी ।।
देश बाँटने वाले उस दिन, अलग- थलग पड़ जाएँगे ।
भारत माता की गोदी में, बैठ भगत इठलाएँगे ।।
डॉ अवधेश कुमार 'अवध'
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