हाय रे जमाना , ये तुझे क्या हो गया है।
घर की बहुओं का घूंघट कमर में बंध गया है।।एक दिन था जब घूंघट घुटने तक लटक रहा था।
बदन पड़ता न दिखाई, मुखड़े को भी ढंक रहा था।।
फिर फैशन के चलते, घूंघट मुखड़े से उपर उठ गया।
पर सुंदर और शालीन रूप में, माथे पर टिक गया।।
फिर ऐसा दौर आया, घूंघट कंधे पर सरक आया।
चूंकि सब बदन अभी ढंका था , इसलिए वो सुहाया।।
पर हाय रे विडम्बना, अब घूंघट कमर में बंधा हुआ है।
अब केवल मुख ही नहीं, अधिकतर बदन दिख रहा है।।
घूंघट, जिसकी पहचान ही, नारी लज्जा हुआ करता था।
अब फैशन की वजह से, सारे समाज को लज्जित कर रहा है।।
अब न जाने घूंघट ढलकने का दौर , कहाँ रुक पाएगा।
भारतीय समाज को नारी का घूंघट, कैसा दिन दिखाएगा।।
जय प्रकाश कुवंर
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