मैं उस उम्र से गुजर रही हूं
सीमा धीमान
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता,,,
एक अलग सी उम्र थी जब सजना सवरना अच्छा लगता था,,,
पर अब सोलह सिंगार नहीं होता,,,
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता,,,
वह जो तड़प एक प्यार में होती थी तेरी आहट से दिल बेकरार होता था,,,,,
अब वह इंतजार नहीं होता
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता,,,
वह जो पागल सी बनाकर बालकनी में खड़ी होती थी
वह जो पगली बनकर जुल्फों को सावर्ती थी तेरे आने की तड़प में रास्ता निहारती थी,,
अब वह तड़प के इंतजार नहीं होता,,
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता
ऐसा नहीं की तेरी फिक्र नहीं है मुझे ऐसा नहीं कि तुझसे मोहब्बत नहीं है मुझे,,,
ऐसा नहीं की दिल रुक-रुक के तड़पता नहीं है मेरा,,,
सच कहूं तो पहले सा इकरार नहीं होता,,,
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता
जहां तेरे छूने से हजारों तमन्ना जाग जाती थी।
जहां तेरे चुमने से में गुलाब सी खिल जाती थी,,,
फल आ चुके हैं उसे पौधे पर अब गुलाब नहीं होता
मैं उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता,,,,,
तेरे जाने से पहले तेरे आने का इंतजार होता था
तू मेरी हर बात पर जान निसार होता था
अब मेरी हर बात पर तेरा इज़हार नहीं होता
मैं उसे उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता,,,,,
उस उम्र से गुजर रही हूं जहां स्पर्श प्यार नहीं होता स्पर्श प्यार नहीं होता
सीमा धीमान
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