जो मौजूद नहीं मौके पर, वह आँखों देखी कहते हैं,
सच से नाता नहीं है उनका, बस झूठी बातें कहते हैं।हैं खुद में मगरूर बहुत, इल्म खलीफा खुद को कहते,
अहंकार में चूर बहुत वह, टेढ़ी चालें हरदम चलते हैं।
नहीं जानता कोई घर में, क्या उनकी उपलब्धि हैं,
खेमेबन्दी में माहिर, गुटबाजों को संग लेकर चलते हैं।
कुछ चम्मच चमचे, झरनी- पौने, आगे पीछे डोल रहे,
थाली और कटोरी की आवाजों पर, इनके सपने पलते हैं।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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