शिकायते है पर एक है

शिकायते है पर एक है

तेरे चक्कर में पड़कर
बहुत दिन निकाल दिये है।
तभी तो जिक्र दोनों का
बहुत ज्यादा हो रहा।
कुछ हमने खोया तो
कुछ तुमने भी खोया है।
पर आखिर में हमने तो
जीत ली है ये जंग।।


क्या अब भी उनको
हमें कुछ बताना पड़ेगा।
कि क्या रिश्ता है यारों
हम दोनों के बीच में।
जमाने के लोगों को
शिकायते अनेक है।
उन्हें हल करना क्या
हमारी जबावदारी है।।


कहाँ से साथ चले थे
कहाँ तक आ पहुंचे है।
हम अपने रिश्ते को भी
दिलसे अपनाते चले है।
जिसके चलते ही अपनी
मोहब्बत को दिखा सके है।
और जमाने वालों की
शिकायते बंद करा सके है।।


कहानियों को लिखना पढ़ना
अलग बात होती है।
उन पर अमल करना भी
अलग बात होती है।
जो करते है अमल उन पर
वो कभी शिकायते नहीं करते।
और जो कहते है उन पर
वो अमल भी करते है।।


बहुत छोटी सी दुनियां है
मेरे जीवन जीने की।
उसे मैं कैसे भी जियूँगा
क्या बताने की जरूरत है।
हम अपनी दुनियां में
सच में बहुत खुश है।
पर जमाने को इसमें भी
न जाने क्यों शिकायते है।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
मुंबई
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