स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक

स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक

वासंतिक नवरात्र तृतीय बेला,
शीर्षस्थ भक्ति शक्ति भाव ।
सर्वत्र दर्शित आध्यात्म ओज,
जीवन आरूढ़ धर्म निष्ठा नाव ।
चंद्रघंटा रूप धर मां भवानी,
शांति समग्र कल्याण प्रदायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।


साधक पुनीत अंतर्मन आज,
मणिपूर चक्र श्री प्रवेश ।
मां स्व विग्रह पूजन अर्चन,
दर्शन अलौकिकता परिवेश ।
युद्ध उद्यत मुद्रा मां जगदंबे,
दुःख कष्ट पाप मुक्ति नायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।


शीश अर्द्ध चंद्र शोभना,
सिंहारूढ़ मनमोहनी छवि ।
दशम कर खड्ग श्रृंगार,
दूर मंगल दोष कर पवि ।
मां असीम कृपा दृष्टि नित,
बाधा संघर्ष हल परिचायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यः फलदायक ।।


अनुभूत सुरभि स्वर लहरी,
मां अनूप स्तुति साधना ।
सुख समृद्ध विमल जीवन ,
परिपूर्ण मनोवांछित कामना ।
वीरता पराक्रम वर संग मां,
सौम्यता विनम्रता विधायक ।
स्वर्णिम आभामयी मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यःफलदायक ।।


महेन्द्र कुमार(स्वरचित मौलिक रचना)
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