"कमल और उसकी कलम"
साथ-साथ चलते हैं हरदम,कभी एक कदम, कभी दो कदम,
'कमल' और उसकी कलम।
कल्पनाओं की उड़ान भरते,
शब्दों की रंगोली सजाते,
विचारों को जीवन देते,
हृदय की भावनाओं को व्यक्त करते।
कभी हँसी-खुशी के गीत गाते,
कभी गम-दुःख की कहानी लिखते,
कभी प्रेम की राग छेड़ते,
कभी क्रांति का शंख बजाते।
कमल की कल्पनाएँ हैं अनंत,
उसकी कलम है सशक्त,
दोनों मिलकर बनाते हैं,
जीवन का एक सुंदर चित्र।
कभी-कभी कमल थक जाता है,
जीने की इच्छा कम हो जाती है,
पर उसकी कलम उसे प्रेरित करती है,
नए जीवन की ओर अग्रसर करती है।
कभी-कभी कलम टूट जाती है,
शब्द सूख जाते हैं,
पर कमल हार नहीं मानता,
नई कलम उठा फिर लिखना शुरू करता है।
कमल और कलम का रिश्ता है अनोखा,
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं,
दोनों मिलकर जीवन को बनाते हैं,
अधिक सुंदर, अधिक सार्थक।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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