"मांगना छोड़ दिया हमने"
दिल में छुपी इच्छाओं को दबा लिया है,शायद व्यक्त करने का ही मौका ना हो।
आँखों में छलकते आँसू पोंछ लिए,
शायद वो बहने का ही समय ना हो।
मुस्कुराहटों को चेहरे पर सजा लिया,
शायद वो मिटने का भी वक्त ना हो।
खामोशियों में यूं डूबे हुए रहते हैं हम,
शायद कुछ भी कहने का वक्त ना हो।
मांगना छोड़ दिया हमने वक्त किसी का,
क्या पता इंकार करने का ही वक्त ना हो।
सोचते रहते हैं, क्या वो भी समझ पाएंगे,
या यूं ही गुम हो जाएंगे ये अरमान हमारे।
डर है हमें, ना कहीं वो भी मुकर जाएं,
और अधूरे रह जाएं ये ख्वाब हमारे।
पर क्या करें, डर का ये बंधन तोड़ ना पाते,
और यूं ही खोए रहते हैं हम, इन अंधेरों में।
कभी ना कभी, इस डर को हम हराएंगे,
और कह पाएंगे, वो बातें जो दिल में हैं।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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