माता कालरात्रि
जय जय माता कालरात्रि ,तू है नर नारायण की मातृ ।
दुनिया पालन करने वाली ,
बनकर आई है आज यात्री ।।
बाल तेरे होते बिखरे बिखरे ,
हाथ में लिए तुम कटार हो ।
दुश्मन कोई बच न सकता ,
जब करती उसपर वार हो ।।
रूप भयंकर तुम हो बनाती ,
तू माॅं भयंकरी कहलाती है ।
भक्तों को तुम शुभफल देती ,
तू माॅं भयंकरी कहलाती है ।।
सबको शुभफल देना माते ,
तुम्हीं कहलाती हो सर्व दातृ ।
भक्तों को तू शुभफल है देती ,
दुष्टों हेतु भयंकर रूप धातृ ।।
तुझे नमन है कालरात्रि माते ,
मुझको भी ऐसा तू शुभ वर दे ।
पूरण हो मेरी भी मनोकामना ,
दे आशीष मेरी तू झोली भर दे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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