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एक चाय और चलेगी..

एक चाय और चलेगी..

आलोक प्रियेदर्शी 
मुझे कोई चाय के लिए पूछता है
तो मैं मना नहीं करता।
ऐसा नहीं कि चाय में
कोई अमृत का स्वाद है,
जिसके बिना रह नहीं सकते।
जब कोई पूछता है चाय पियोगे,
मतलब वह कुछ देर
साथ चाहता है आपका,
चाहता है कि कुछ देर
उसके पास बैठो।
चाय को बनाना पड़ता है,
रिश्तों की तरह।
चाय बनाने वाला सिर्फ
चाय ही नहीं बनाता,
कई रिश्ते भी बनाता है।
चाय बनने में कुछ समय लगता है।
रिश्तों को भी समय चाहिए,
रिश्ते बाजार में पैक वस्तु नहीं है
उसे चाय की तरह बनाना पड़ता है।
चाय मे प्यार की अदरक
और श्रद्धा की तुलसी डालो,
अपने प्यार की उष्णता से
जितना हो सके उबालो।
फ़िर अच्छी तरह छानो,
जिससे निकल जाए
बची हुई सारी कड़वाहट।
फ़िर पेश करो,
चाय को पूरी संजीदगी से,
क्योंकि यह सिर्फ चाय नहींरिश्तों का जोड़ने का अमृत है!
लेकिन यह सब बनाने और पीने वाले के लिये है बेचने वाले के लिये नहीं चाय बेचने वाला तो क्या क्या बेच सकते है आप सब वाक़िफ़ है …….
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