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चित्र लेखन

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सुमन सुरभि
निज दशन बीच दबे आंचल में,
हिय सागर में उठा विक्षोभ समेटे।
उदास हृदय से देख रही कातर हो,
प्रियतम को होते ओझलआंखों से।
कपाट की ओट हताश सी खड़ी,
स्ववंश की मर्यादा को भी जकड़े।
बहते अश्रुओं ने दिया बहाजो काजल,
नासा से विचर होठो पे ठहरा बन बादल।
दे शपथ बड़ीआशा सेअपने परिवार का ,
दायित्व छोड़ गये मेरे ऊपर अपने पीछे।
जब तक लौट के घर न आएगे प्रियतम
इसी तरह मेरा समय कटेगा रोते रोते।
कहूँगी किससे मै अपने मन की व्यथा को,
प्रिय वियोग पीड़ा केअंतर जज्बात जो उमड़े।
मै न करूंगीं कभी निराश उन्हें अपने मग में,
पूर्ण होते मुझसे उनने जो देखे होंगे सपने।
करूगी सारे कर्तव्य पूरे उठे रहे करम पलड़े,
माना सास ससुर की सेवा में मिले आशीष बड़े।
जलूंगी दिनरात मैं तेरी विरह अगन के फेरे मे,
मुझको जब उनकी आयेगी याद अकेले में।
 सुमन सुरभि मौलिक आवास विकास कालोनी उन्नाव यूपी।
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