रिश्ते बचाने के लिए, मैं झुकता गया,
कमर टेढ़ी हो गयी, मैं झुकता गया।जितना भी झुका, रिश्ते सिर उठाते गये,
लेटने की इंतिहां तक, मैं झुकता गया।
किसने समझा दर्द मेरा, क्यों झुका हूँ,
बढ़ रहा था मंज़िल तक, क्यों रुका हूँ?
विनम्रता को सबने, कमजोरी समझा,
रिश्ते बनाने के लिये, सबसे ही ठुका हूँ।
परिवार में रिश्ते रहें, चाहत मेरी,
दूर रह भी मिलते रहें, चाहत मेरी।
अधिकार सबके, बस कर्तव्य मेरा,
प्यार से मिलकर रहें, चाहत मेरी।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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