"इच्छाओं का कारागार"
इच्छाएं अनंत, निर्बाध मन की उड़ानें,अभिलाषाओं की जंजीरें, जकड़े रहती हैं।
जैसे पंछी को पिंजरे में बंद कर दिया जाए,
चाहतें बढ़ती जाए, सपने सुरसा हो जाएं।
इच्छाएं जब सीमाओं को लाँघती हैं,
तो शौक बन जाते हैं गुनाहों की आग।
जैसे जंगल में लगी आग, सब जला देती है,
अंधेरे में डूब जाते है, नैतिकता के रंग।
सीमाएं ज़रूरी हैं, दिशा दिखाती हैं,
इच्छाओं को सही रास्ते पर ले जाती हैं।
जैसे नदी को तटों की ज़रूरत होती है,
वरना वो बह जाए अनंत में, कहीं खो जाए।
इच्छाएं हों जब नियंत्रण में,
तो जीवन बन जाता है मधुर गीत।
जैसे वीणा के तारों को छेड़ा जाए,
निकलती मधुर ध्वनि, मन को मोह लेती है।
सीमाओं में बंधी इच्छाएं,
जीवन को देती हैं नई उड़ानें।
तो आइए, हम सब मिलकर सीखें,
इच्छाओं को संभालना, जीवन को संवारना।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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