"ज़िन्दगी के विषम रंग"
विचित्र है ये खेल, ज़िन्दगी का ये सफर,
कहीं खुशियों का मेला, कहीं दुःखों भरी डगर।
कभी हँसी की झंकार, कभी आँसूओं की बारिश,
कभी उम्मीदों की किरण, कभी टूटे सपनों की कशिश।
कहीं हर ज़िद पूरी, कहीं ज़रूरत भी अधूरी,
कहीं सुगंध भी नही, कहीं पूरा जीवन कस्तूरी।
कहीं महलों की चकाचौंध, कहीं झोपड़ियों का मलिन दृश्य,
कहीं वैभव का नशा, कहीं अभावों का तूफान ज़बरदस्त।
फिर भी चलता रहता है, ये जीवन का रथ,
कभी धीमे, कभी तेज, कभी ऊबड़-खाबड़ रास्ते, कभी सुपथ।
हर पल बदलते रंग, हर पल नया अनुभव,
कभी खुशी का उल्लास, कभी दुःख का गम।
लेकिन हार न मानना, यही है जीत का मंत्र,
हर चुनौती का सामना करना, यही है जीवन का तंत्र।
क्योंकि हर ज़िद पूरी हो, हर ज़रूरत पूरी हो,
ऐसा तो हो नहीं सकता, यही है सचाई की मूर्ति।
फिर भी हर पल जीना सीखो, हर पल मुस्कुराना सीखो,
क्योंकि ज़िन्दगी अनमोल है, इसे यूं ही गंवाना मत।
हर ज़िद को त्यागकर, हर ज़रूरत को समझकर,
चलो मिलकर बनाएं, बेहतर यह ज़िन्दगी का सफ़र।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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