"प्रतिरोध की आग"

"प्रतिरोध की आग"

प्रतिरोध है कहीं अगर,
होना चाहिए उसे प्रतिरोध की तरह।

दमन के अंधकार में जलती,
उम्मीदों की यह ज्योति लौ है।

सच्चे प्रतिरोध की नहीं,
बन सकती फ़र्ज़ी अनुकृति

सच्चे प्रतिरोध में सारे लक्षण,
भी होने चाहिए प्रतिरोध के।

यह आवाज उठती है जब,
अत्याचार सहन नहीं होता।

यह ज्वाला भड़कती है जब,
अन्याय की सीमा लांघी जाती है।

यह मुट्ठी भींचती है जब,
आज़ादी छीनने की कोशिश होती है।

प्रतिरोध केवल क्रांति नहीं,
यह एक संघर्ष है,
एक विचारधारा है,
एक जिजीविषा है।

यह हार नहीं मानता,
यह झुकता नहीं,
यह टूटता नहीं।

यह लड़ता रहता है,
हमारी आखिरी सांस तक।

क्योंकि प्रतिरोध है जीवन का,
सबसे बड़ा अधिकार।

यह आत्मसम्मान का प्रतीक है,
यह गरिमा का रक्षक है।

यह इंसानियत की आवाज है,
यह भविष्य की किरण है।

इसलिए जहाँ भी हो अन्याय,
जहाँ भी हो अत्याचार 'कमल',
वहाँ उठ खड़ा हो प्रतिरोध,
बनकर एक अटूट शक्ति।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
"यह रचना मेरे अनुभवों से कैसे जुड़ी है"

मैं पिछले 6 वर्षों से एक आवासीय परिसर में रह रहा हूं, जहां मैंने बिल्डर, उसके कर्मचारियों और कुछ सह-निवासियों द्वारा किए जा रहे शोषण और भ्रष्टाचार का अनुभव किया है। मैंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और प्रतिरोध किया, लेकिन दुर्भाग्य से, कुछ लोगों ने ही मेरा साथ दिया, और वह भी केवल थोड़े समय के लिए और केवल व्हाट्सएप पर।


"प्रतिरोध की आग" कविता मेरे अनुभवों को दर्शाती है और उन सभी लोगों की पीड़ा को व्यक्त करती है जो अन्याय का सामना कर रहे हैं। यह कविता हमें याद दिलाती है कि जब तक हम ईमानदारी से शोषण का विरोध नहीं करते, तब तक हम शोषित और प्रताड़ित होते रहेंगे।


मेरी यह रचना एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है : अन्याय के खिलाफ चुप्पी स्वीकृति है। हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए, एकजुट होना चाहिए और शोषण के खिलाफ लड़ना चाहिए।

इस कविता के माध्यम से, मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूं कि वे अन्याय के खिलाफ खड़े हों और एक बेहतर समाज बनाने के लिए मिलकर काम करें।

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