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केश पाश

केश पाश

गुलाबी गुलाबी गालों पे झूलती लटों को चूमते
रतनारे होठों की लालिमा लावण्य देख झूमते
इन गेसुओं को मत कहो ये नटखट बड़े बदनाम ये
है हुस्न की आदत पड़ी ये खुद बड़े गुलफाम ये।।
हैं ढक देते कजरारे अंखियों को अपने पाश से
नजर लगती नहीं उन्हे किसी बिन बुझी प्यास से
दुलार देते हैं संवार देते है शोख नजरों को हर बार ये
समझो बचा लेते हैं ये नाजुक कली को दस्ते खार से।।
इठलाती कमरिया जब जब उद्दाम उच्श्रंखल है हुई
कहती बुलाती पराई आंख को अपने पाश मोह में
तब ये ही ताने बाने बुनती घने चिकुर के जाल से
थप थपाकर कर करें मना बताती हया का है सवाल ये।।
प्रेमियों ने रिझाया प्रिया को उनके कुंतल जाल से
कसीदे पढ़ पढ़ के लुभाया, फेंका जाल है कमाल ये
शोख लटें भी शरमाई सुन सुन के अपनी तारीफ यूं
बस गया घर किसी का हंसी खुशी बस इतनी सी बात से।।
खुशबू फूल की इन्होंने समेटीं जब वो जूडे में सजीं
बिखरीं गर कहीं तो जाने कितने दिल घायल कर गईं
ये वो तुर्श शै है मिसर जो नारी को पूर्ण कर गईं
उसके रूप में श्रृंगार में चार चांद जड़ गईं।।- 
मनोज कुमार मिश्र
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