प्यार ही केवल नहीं, इजहार भी हो!
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)हो गया गुम मेघ दिखला मुख कहीं,
व्योम सूना रह गया स्वाति-निर्जल।
घोंसले में तप रहा चुपचाप अब ,
चोंच खोले कण्ठ-कातर कपिञ्जल।
मनुहार ही न केवल, इसरार भी हो!
ललक केवल, जिगर इस्पाती नहीं,
लहर गिनने से न कुछ होगा तनिक।
भय-प्रकम्पित तीर पर नाविक खड़ा,
प्रभञ्जन फुफकारता, जैसे फणिक।
पोत ही केवल नहीं, पतवार भी हो !
व्योम सूना रह गया स्वाति-निर्जल।
घोंसले में तप रहा चुपचाप अब ,
चोंच खोले कण्ठ-कातर कपिञ्जल।
मनुहार ही न केवल, इसरार भी हो!
ललक केवल, जिगर इस्पाती नहीं,
लहर गिनने से न कुछ होगा तनिक।
भय-प्रकम्पित तीर पर नाविक खड़ा,
प्रभञ्जन फुफकारता, जैसे फणिक।
पोत ही केवल नहीं, पतवार भी हो !
(कपिञ्जल =पपीहा)
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