"मौन की शक्ति: नींव का पत्थर"
शब्दों की चमक में खो मत जाना,नींव के पत्थर की सीख अपनाना।
शांत रहकर सहन कर धरती,
तब बनती है इमारत मजबूत।
बोलने से पहले सोच विचार,
क्योंकि शब्दों का है बड़ा प्रभाव।
कर्मों की आवाज है सबसे बड़ी,
करके दिखाओ अपनी सच्ची शक्ति।
नींव के पत्थर की तरह मजबूत बनो,
मौन रहो अपनी मंजिल जरूर पाओ।
प्रिय मित्रों नींव के पत्थर, वह जो इन भव्य इमारतों के आधार होते हैं, वो कभी आवाज नहीं करते। वे मौन रहकर अपनी मजबूती का परिचय देते हैं।
उनकी तरह, हमारे जीवन में भी मौन रहने की शक्ति है। जब हम बोलने से पहले सोचते हैं, जब हम शब्दों की जगह कर्मों से बोलते हैं, तो हमारी बातों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
मौन क्षण हमें आत्मविश्लेषण का मौका देते हैं। वे हमें अपने विचारों को सुनने, अपनी गलतियों से सीखने और आत्म-सुधार की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
तो आइए, हम भी नींव के पत्थरों से सीखें। कम बोलें, ज़्यादा करें। अपनी शक्ति को मौन में छुपाकर रखें, और जब बोलें, तो ऐसा बोलें कि वो गूंज उठे।
अगली बार जब आप गुस्से में हों या कोई बात कहने का मन हो, तो थोड़ा रुकें और सोचें। क्या वाकई बोलना ज़रूरी है? क्या मौन रहकर अपनी बात कहना ज़्यादा प्रभावशाली नहीं होगा?
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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