चुप रहकर तुम सब बोल गए।
अनसुलझे गांठे खोल गए।।बहुतों ने जोर लगाया था।
पर भेद न खुलने पाया था।।
अपने अपने सब तर्क दिये।
चिल्लाकर बेड़ा गर्क किये।।
जहाँ काम थी छोटी सूई की।
बंदूकें सबने हाथ लिए।।
जहाँ हाथ जोड़ना काफी था।
सब ने दो दो हाथ किए।।
तेरी आँखों ने सब का भाव पढ़ा।
और हाथ जोड़ एक मंत्र पढ़ा।।
कंधे पर सबके हाथ दिये।
दुख दर्द सभी के बांट लिये।।
जो काम न सबके आएगा।
नेतृत्व न करने पाएगा।।
झुकना सिखो, मत कहो तनो।
तुम आदमी से इंसान बनो।।
जय प्रकाश कुवंर
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