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मैं गैरों से तो जीत गया,

मैं गैरों से तो जीत गया,

पर अपनों से मैं हार गया।
जिनके खातिर कुछ किया नहीं,
वो प्रेम से अब भी मिलते हैं।
जिन पर यह जीवन वार दिया,
वो मुंह फुलाए रहते हैं।
यह कैसी दिल की उलझन है
कैसा यह जग का नाता है।
अपनों गैरों में उलझ गया,
अब जीवन नहीं सुहाता है। 
 जय प्रकाश कुवंर
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