जड़ों से जुड़कर ही वृक्ष फलते फूलते,

जड़ों से जुड़कर ही वृक्ष फलते फूलते,

बिना जड़ के वृक्ष फल फूल नहीं लगते।
लौटना होगा पुराने दौर में यह तो तय है,
कुल्हड़ में चाय के दौर यूँ ही नहीं चलते।
बच्चे बड़े हो गये आधुनिकता में पल रहे,
बड़े बूढ़ों के संस्कारों से ही घर सँभलते।
लकीर के फ़क़ीर आज दिल के अमीर हैं,
नव पीढ़ी की जेब, सिक्के भी नहीं मिलते।
सौ बरस पीछे देखोगे सभ्यता पता चलेगी,
नये दौर के बच्चों में संस्कार नहीं मिलते।
अर्द्धनग्न घूमते उन्मुक्त जीवन जीने की चाह,
बिन विवाह संग रह, संस्कृति मे नहीं ढलते।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ