धन भवन वैभव अकिंचन ही रहे
डॉ रामकृष्ण मिश्रधन भवन वैभव अकिंचन ही रहे
संचिकाओं सी मनुजता खो गयी।।
फटे चिथड़ों सा उपेक्षित स्वस्छ मर्क्षादा
पूर्ण जो है स्वयं फिर भी चाहता ज्यादा।
सदाशयता की चतुर्दिक भित्तियाँ भसकीं
भेद अपने पराये के अब नहीं सादा।।
कहाँ जाकर चेतना भी सो गयी।,
अँधेरे को दीप का जलना नहीं भाता
उपेक्षित भी खड़ा याचक धन नहीं पाता।
जो सदा कठिनाइयों में रहा है अविकल
नहीं अपने भाल किंचित सिकन है लाता।।
द्ष्टि विकृति, कल्पनाएँ धो गयी।।
तंग होते जा रहे संबंध अब सारे
बहुत मुश्किल है समझना कहाँ हम हारे।
प्रेम भी सौदा गिरी पर जो उतर आए
कौन बैरी कौन सचमुच ठहरते प्यारे।।
एक चिंता बीज जाने बो गयी।।
फटे चिथड़ों सा उपेक्षित स्वस्छ मर्क्षादा
पूर्ण जो है स्वयं फिर भी चाहता ज्यादा।
सदाशयता की चतुर्दिक भित्तियाँ भसकीं
भेद अपने पराये के अब नहीं सादा।।
कहाँ जाकर चेतना भी सो गयी।,
अँधेरे को दीप का जलना नहीं भाता
उपेक्षित भी खड़ा याचक धन नहीं पाता।
जो सदा कठिनाइयों में रहा है अविकल
नहीं अपने भाल किंचित सिकन है लाता।।
द्ष्टि विकृति, कल्पनाएँ धो गयी।।
तंग होते जा रहे संबंध अब सारे
बहुत मुश्किल है समझना कहाँ हम हारे।
प्रेम भी सौदा गिरी पर जो उतर आए
कौन बैरी कौन सचमुच ठहरते प्यारे।।
एक चिंता बीज जाने बो गयी।।
***********रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com