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ईश्वर से संवाद

ईश्वर से संवाद

सारा जगत ही मुझको प्यारा, सबकी चिन्ता करता हूँ,
न हो हानी कोई गुलाब को, संग संग काँटे रखता हूँ।
श्याम लक्ष्मी को प्यारा, नील क़ंठ पार्वती को भाया,
लक्ष्मी पार्वती की इच्छा, नील गगन में पूरी करता हूँ।
किसान चाहे वर्षा पानी, कुम्हार कहे सूरज की वाणी,
मेरे ही तो बच्चे हैं सब, सबका ध्यान किया करता हूँ।
मीठा पानी बारिश का आ, नदियां ताल तलैया जाता,
बादल भी पानी ले पायें, इसिलिये सागर में भरता हूँ।
दिन भर मानव काम करें, थककर रात्रि विश्राम करे,
सतरंगी किरणों से सजकर, सुबह सवेरे आ जाता हूँ।
संवाद तुम्हारा बहुत मधुर, प्रश्नों का विस्तार बहुत है,
पतझड़ में ईंधन हित पत्ते, नवसर्जन आस जगाता हूँ।
सबको सब कुछ मिल जायेगा, महत्व नहीं रह जायेगा,
मीठे को महिमा मंडित करने, खारे का महत्व बताता हूँ।
मिला बहुत तुमको सखी, इस पर भी तुम गौर करो,
कुछ कर्मों का खेल भी होता, सन्तुष्टि सार जताता हूँ।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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