सियासी दूकानें

सियासी दूकानें

बारह वर्ष पे लगता कुंभ मेला ,
पाॅंच वर्ष पर होता है मतदान ।
एक माह पूर्व सियासी दूकानें ,
लेकर घूमते हैं ये चल दूकान ।।
गाॅंव गाॉंव द्वार द्वार प्रत्याशी ,
मन मस्तिष्क में लेकर दूकान ।
घर घर में बातें खूब हैं बेंचते ,
वोट दो तेरा करूॅंगा कल्याण ।।
एक एक वोट का महता बहुत ,
जाकर अवश्य करें मतदान ।
तेरे एक वोट जीत हार होती ,
एक वोट से राष्ट्र होगा महान ।।
खाना नाश्ता ये बाद में करना ,
पहले करो निज मत का दान ।
दिल दिमाग से‌ जाॅंच कर लेना ,
फिर वोट हेतु कर देना पयान ।।
एक का आना व दूजे का जाना ,
चल दूकान का लेकर अभियान ।
अपनी दधि कोई खट्टा न कहे ,
कोई न बतावे फीका पकवान ।।
दधि तो लेकर हर कोई चलते
स्वादिष्ट दधि का वादा है पक्का ।
पहले खाना फिर मुझसे कहना ,
दधि न मिले कभी भी यह खट्टा ।।
कोई दधि शुद्ध लेकर निकला ,
कोई मिलाया चीनी और ऑंटा ।
शुद्ध दधि मिला तो बहुत शुकुन ,
मिलावट बनते ऑंख का काॅंटा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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