तेरा आना प्रिय
समेट लूँ कैसे उस क्षणिक पल को,उस एक क्षण को जीती मैं पल पल।
बाँध लूँ कैसे तुझको निज अंचल में,
तू ढुलकता इन दृगों का हिमजल।
तेरा आना प्रिय या तेरा जाना...
अमिट स्मृति हृदय में रहती अविचल।
तेरी आसक्ति तम भर का खेला,
मेरा प्रेम अमिट अजर है।
मैं समीप तब दिखूँ तुझको,
तेरी छवि अंकित हिय अंदर है।
तेरा आना प्रिय या तेरा जाना...
मेरी धरा भी तू और तू ही अंबर है।
तेरा आना सिर्फ आने तक,
मेरी स्मृतियों की प्रथम जागृति तू,
तेरे मन के कोने में कहीं मैं हूँ,
मेरा प्रतिबिम्ब और आकृति भी तू।
तेरा आना प्रिय या तेरा जाना...
मेरा अक्षर तू और मेरी कृति भी तू।
डॉ रीमा सिन्हा
लखनऊ
स्वरचित
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