आम के टिकोले
ज्योतीन्द्र मिश्र
आम के टिकोलेछोटे छोटे पेड़ों पर
आम के टिकोले
ये दोपहर का सन्नाटा
बचपन टटोले
हम दौड़ दौड़ जाते थे
धूप बुलाती थी
हमको टिकोले देने
आँधी भी चली आती थी
भर भर के जेब लाते
बिना मुँह खोले
दोपहर का सन्नाटा
बचपन टटोले
ताड़ के पंखे से
होता था मेरा स्वागत
आंसू में दुब जाती थी
मिहनत और लागत
खिंचती थी मइया जब
कान हौले हौले
दोपहर का सन्नाटा
बचपन टटोले
खाते थे शाम को जब
आम का गुड़ म्मा
क्या खूब बनाई है
अरे वाह, मेरी मम्मा
माँ गयी ,नसीब गया
अब खाते हैं,हिचकोले
दोपहर का सन्नाटा
बचपन टटोले
ज्योतीन्द्र मिश्र
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