दुर्बल को ही तीव्र प्रखरता का
डॉ रामकृष्ण मिश्रदुर्बल को ही तीव्र प्रखरता का
आभास हुआ करता है।
जो समर्थ हैं उनके आगे
छायाएँ चलती हैं।
धूप बेचारी डरी --डरी सी
सकुचाई रहती है।।
रम्य शैत्य संवहन निकेतन में
संवास हुआ करता है।।
जैसे शैल खण्ड संध्या तक
निर्ममता सहता है।
आखेटक आतप के पथ
अवरोध नहीं रखता है।।
उस कायरता के संशोधन में
विश्वास हुआ करता है।।
ताल ठोक कर कदाचार में
लगे स्व घोषित वीर।
आँखें चौड़ी किए देखते
रह जाते हैं धीर।।
अनगढ़ पथ में चलना तो सायास हुआ करता है।।
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आभास हुआ करता है।
जो समर्थ हैं उनके आगे
छायाएँ चलती हैं।
धूप बेचारी डरी --डरी सी
सकुचाई रहती है।।
रम्य शैत्य संवहन निकेतन में
संवास हुआ करता है।।
जैसे शैल खण्ड संध्या तक
निर्ममता सहता है।
आखेटक आतप के पथ
अवरोध नहीं रखता है।।
उस कायरता के संशोधन में
विश्वास हुआ करता है।।
ताल ठोक कर कदाचार में
लगे स्व घोषित वीर।
आँखें चौड़ी किए देखते
रह जाते हैं धीर।।
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