हो सके तो कभी सपने में तनिक आओ

हो सके तो कभी सपने में तनिक आओ

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हो सके तो कभी सपने में तनिक आओ
नेहमय किस्से विगत के कुछ सुना पाऊँ। ।


समय की गतिमयी दीर्घा हो गयी विस्तृत
मनुजता के भाल अब भी नहीं हैं चन्द्रित।
है उपस्थित आज भी आलोक निर्मल जो
दृष्टि के वैविध्य में होता रहा निन्दित।।
चाहता हूँ अमलता को तो दिखा पाऊँ।।


पथ वही है, वही धरती और जीवन क्रम।
तथापि कुछ ही क्षणों में उगाता है भ्रम।
स्वयं को अपवाद समझा करे जब कोई
और सज्जा में लगा दे व्यर्थ सारा श्रम।।
असंशय की परिधि मे रिश्ते निभा पाऊँ।।


विकलता ही वेदना का सृजन करती है
असहयोगी भाव सारे वहन करती है।
संचयन का सुख भले अच्छा लगे लेकिन
दूर तक आघात कितना सघन करती है।।
काश! संधित विकृत पल में कुछ बचा पाऊँ।। 
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रामकृष्ण
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