मां दुर्गे का पंचम रूप,अपरिमित स्नेह सागर
पंचम चैत्र नवरात्र अद्भुतमां स्कंद माता परम दर्शन ।
पूजा अर्चना स्तुति शीर्षस्थ,
ममतामयी अनुपम स्पर्शन ।
योग परिक्षेत्र निर्वहन भवानी,
पुनीत सानिध्य सम अभिजागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,अपरिमित स्नेह सागर ।।
उर स्थिति विशुद्ध चैतन्य,
साधना मार्ग फलन छोर ।
उपमा गौरी पार्वती माहेश्वरी ,
भक्ति शक्ति सिद्धता ठोर ।
जन वैचारिकी सकारात्मक ,
नारी जगत स्पंदन आदर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,अपरिमित स्नेह सागर ।।
जय माता दी दिव्य उद्घोष,
जन जन मंगलता संचरण ।
दुःख कष्ट मूल विलोपन,
रज रज खुशियां अवतरण ।
सूर्य मंडल अधिष्ठात्री मां,
परिपूर्ण सुख समृद्धि गागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप, अपरिमित स्नेह सागर ।।
वंदन अभिनंदन स्कंद मात,
धर्म निष्ठता अप्रतिम पथ ।
सरित प्रवाह भक्ति रस,
सफल साधकगण मनोरथ ।
ऊर्जस्वित उपासना भाव,
जीवन दिशा दशा नागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,अपरिमित स्नेह सागर ।।
महेन्द्र कुमार( स्वरचित मौलिक रचना)
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