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चिनगी पेसल ई रउदारी

चिनगी पेसल ई रउदारी

डॉ रामकृष्ण मिश्र
चिनगी पेसल ई रउदारी
लहरित सगरो लगे दुआरी
बाँट भेल हे अप्पन हिरदा
केकरा कइसे हाल बताऊँ।।
ई चैता के घाम कटाहा
देह जराबे पछुआ हाहा
आँख मुनाहे जन्ने ताकूँ
कइसे छनकल गाल बजाऊँ।।
खिड़की अँटकल बंद दुआरी
साँस न सरके बारी - झारी
लहकल लहरी थपड़ी पीटे
कइसे तलफित भाल बचाऊँ।।
किकुरल होतन कनहेूँ छहुरी
महुआ फूल जुडाबे टहरी
सगरो सूना सूना झाँझ
अइसन में का थाल नचाऊँ। 
रामकृष्ण
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