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रहता है प्रतिभात सामने तेरा मंजुल छायाभास।

रहता है प्रतिभात सामने तेरा मंजुल छायाभास।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
रहता है प्रतिभात सामने तेरा मंजुल छायाभास।
जब मरीचिका में पटरी से पाँव उतर जाते हैं ,
अंगुलि का संकेत तिग्म सत्वर सँभाल लेता है।
सिर जब दुखने लगता है यादों के तीव्र तपन से,
मनःपटल पर क्रोड उभर कर शीतलता देता है।
संस्मृतियों के उत्प्राणन से जीवित हो आता इतिहास।
काल त्रिखण्डी नहीं, चेतना की अविरल धारा है,
आगत और विगत रहते हैं नित्य अनागत-गर्भित।
निबिड़ भ्रान्ति में निपतित हैं,जो गत को मृत कहते हैं,
गत का ही जीवन्त योग करता भविष्य परिभाषित।
कालक्रमिकता एक अखण्ड महाकाल की साँस-उसाँस।
कहीं नहीं हम आते-जाते रूप बदल जाते हैं,
रूप बदल जाने से उनके नाम बदल जाते हैं।
नाम-रूप की माया कर देती पहिचान तिरोहित,
तथता में हम सब अपनों को अपने में पाते हैं। 
दु:ख -तिमिर में प्राण!तुम्हारी छवि ही करती है उजास।
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