शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग,उग्र आवेश अपार
नयनन छवि अद्भुत,पावक संग श्रृंगार ।
मात पिता रेणुका जमदग्नि,
श्री हरी षष्ठ अवतार ।
कर शोभा शस्त्र शास्त्र,
सत्य सत्व व्यक्तित्व सार ।
शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग, उग्र आवेश अपार ।।
त्रिलोक अविजित उपमा,
आह्वान स्तुति सद्य फलन ।
असाधारण ब्राह्मण पर्याय,
पितृ आज्ञा सहर्ष निर्वहन ।
मस्तक पृथक कर जननी,
पुनःस्थापन काज साकार ।
शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग, उग्र आवेश अपार ।।
क्षणिक धैर्य कदापि नहीं,
दर्श कर आस पास अनीत ।
एक्य भुजा मृग छाल शोभित,
द्विज मनमोहक उपवीत ।।
क्रोधाग्नि अनुपमा रोहक,
अति कंपन धरा हाहाकार ।
शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग, उग्र आवेश अपार ।।
सहस्त्रार्जुन परम शत्रु,
मैत्री उद्गम स्नेहिल स्पर्श ।
परशु संज्ञा शिव जी कृपा,
हर पल तत्पर तार्किक विमर्श ।
कोटि वंदन भृगुकुल भूषण विप्र,
अंतर सरित नित मंगल धार ।
शस्त्र शास्त्र चिन्मयता संग, उग्र आवेश अपार ।।
महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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