"वाद-विवाद बनाम चर्चा: क्या श्रेष्ठ?"

"वाद-विवाद बनाम चर्चा: क्या श्रेष्ठ?"

"वाद-विवाद से चर्चा सदैव बेहतर होती है। वाद-विवाद इस बारे में होता है कि कौन सही है। चर्चा इस बारे में होती है कि क्या सही है।"
प्रिय मित्रों मानव सभ्यता सदैव से विचारों के आदान-प्रदान और बहस का केंद्र रही है। विचारों का यह टकराव कभी-कभी वाद-विवाद का रूप ले लेता है, तो कभी चर्चा का। दोनों ही प्रक्रियाएं ज्ञानवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन इनके उद्देश्य और परिणाम भिन्न होते हैं।
वाद-विवाद का उद्देश्य होता है किसी मुद्दे पर अपनी राय को स्थापित करना और विपक्षी पक्ष को परास्त करना। इसमें तर्क, प्रमाण और युक्तियों का प्रयोग कर विरोधी पक्ष की कमजोरियों को उजागर किया जाता है। वाद-विवाद में हार-जीत का भाव प्रबल होता है, जिसके कारण तनाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
चर्चा का उद्देश्य होता है किसी विषय की गहन समझ प्राप्त करना और विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करना। इसमें खुलेपन और स्वीकृति का भाव होता है। चर्चा में सभी पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर मिलता है, जिससे विभिन्न विचारों का आदान-प्रदान होता है और सत्य की तलाश में मदद मिलती है।
इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि चर्चा सदैव वाद-विवाद से बेहतर होती है। इसका कारण यह है कि चर्चा में सभी पक्षों को अपनी बात रखने का अवसर मिलता है, जिससे सत्य की तलाश में मदद मिलती है। वाद-विवाद में हार-जीत का भाव प्रबल होता है, जिसके कारण तनाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
मेरा मानना है कि सबसे महत्वपूर्ण कौशलों में से एक यह है कि किसी भिन्न दृष्टिकोण/राय को बिना रुष्ट, रक्षात्मक या क्रोधित हुए सुनने की क्षमता विकसित करना है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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