भगवान के बन्दे अब भी, मानव सेवा में लगे हुये,
मन्दिर के दरवाजों पर, सेवा में भन्डारे लगे हुये।किसी मदरसे मस्जिद में, ऐसा कोई काम दिखाओ,
मानवता जब काम कर रही, कुछ लूट में लगे हुये।
मुफ्त माल पर सबकी नजरें, मोदी की खोदें जो कब्रें,
जब आक्सीजन की मारा मारी, होंठ क्यों थे सिले हुये।
दिल्ली के दंगों में देखा, जब बम गोली बारूद चले थे,
तब भी सबको देख रहे थे, धर्म की चादर ढके हुये।
हमने तो अपने बच्चों को, शिक्षा का महत्व बताया है,
कुछ संख्या बल बढाबढा कर, शिक्षा से वंचित बने हुये।
कुछ ने दहशतगर्दी को ही, धर्म का मूल मंत्र माना,
विश्व पटल पर आज वही, आतंकी शंकाओं से घिरे हुये।
फिलस्तीन में झगड़ा हो तो, सबके तेवर चढ़ जाते हैं,
अफगानिस्तान में कितने मर गये, कान में रूई पड़े हुये।
कोरोना के संकटकाल में , सियासत अब भी जारी है,
वेक्सीन पर खेल खेलते, कुर्सी पाने की खातिर अडे हुये।
धर्म युद्ध में अभिमन्यु को, कौरव पुत्रों ने छल से मारा,
अर्जुन की वध प्रतिज्ञा, दुर्योधन हित धृतराष्ट्र तुम बने हुये।
कहां कमी है धर्म युद्ध में, खुद एक बार भीतर झाँकों,
मौत खड़ी है दरवाजे पर, क्यों उसके सौदागर बने हुये?
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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