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पत्रकारिता में अब स्वतंत्रता एक चुनौती है

पत्रकारिता में अब स्वतंत्रता एक चुनौती है

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक  जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

चौथे स्तंभ का निर्माण तीनों स्तंभों की प्रहरी के लिए किया गया था, लेकिन अब मीडिया कर रहा है ब्लैकमेलिंग का धंधा। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ, ऐसा कह रहा है समाज के वे प्रबुद्ध लोग जो इसके शिकार हुए है या हो रहे है। पहले पत्रकार का नाम सुनते ही लोग घबराते थे, लेकिन इज्जत भरी नजरों से देखते थे, वही आज लोग नफरत भरी आँखों से देखते है। इसी का नतीजा है की भारत सरकार की सूचना प्रसारण मंत्रालय जाली पत्रकारों एवं फजी चैनलों पर शिकंजा कसने के लिए सभी राज्यों के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देश जारी कर दिया है। आधुनिक युग में पत्रकारिता को लोग पैसा कमाने का साधन के रूप में देखने लगा है। पहले भी यह स्थिति थी, लेकिन अब बद से बदतर होती जा रही है।

पत्रकार का परिभाषा यह है कि, पत्रकार वह है जो कोई खबर को बिना तोड़ मरोड़ कर, निष्पक्ष और सटीक जानकारी को आम जन तक पहुँचाये और उनकी कलम से लिखी खबर जनहित में हो। जिसकी कलम बिकाऊ ना हो, उसने सच्चाई लिखने, बोलने का संकल्प लिया हो। जो निष्पक्ष हो, सटीक हो। यही एक पत्रकार की देशभक्ति होती है। लेकिन अब पत्रकारों की स्थिति ऐसी नहीं रही, बल्कि सत्ता बदलने के साथ-साथ पत्रकार की कलम में निष्पक्ष होने की कला भी बदलती जा रही है। ये लोकतंत्र के लिए घातक ही नहीं बल्कि बहुत घातक है। क्योंकि अब जागरूक आम-जन अखबार को पढ़ते ही चाटूकारिता को स्पष्ट रूप से समझ जाती है। अब चैनलों को ही देखें तो कुछ गिने-चुने न्यूज चैनल ने तो, पत्रकारिता की हत्या ही कर दी हो, ऐसा दिखाई देता है। पारदर्शिता, जवाबदेही भी अब समाप्त हो चुकी है। क्योंकि ना तो अब पत्रकार तीखे सवाल करता है और ना ही जवाब मांगता है। जबकि आज पत्रकारिता का महत्व पहले से अधिक बढ़ गया है। पत्रकारिता को समाज का दर्पण होना चाहिए। पत्रकारों की लेखनी, समाज की गंदगी को दूर करने के लिए होनी चाहिए और देश एवं राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि अब बहुत कम पत्रकार पत्रकारिता की राह चुनते है।

पाठक निष्पक्ष और निर्भीक खबरें पढ़ना और देखना चाहता है, यही पत्रकारिता की खास पहचान भी है। वर्तमान समय काल से पूर्व भी देश में पत्रकारिता थी और समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों पर विश्वास करते थे। कहावत भी थी सौ बकी एक लिखी। पहले “प्रेस” शब्द को सशक्त लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता था। जबकि उस समय भी दलीय पत्रकारिता थी। जैसे संघ विचारधारा का “पांचजन्य” था, तो वामपंथी विचारधारा का “ब्लिट्ज” और कांग्रेस की विचारधारा पर था “नेशनल हेराल्ड”। इसी प्रकार के और भी अन्य समाचार पत्र थे। पहले के समाचारों में मिलावट बहुत कम या नगण्य होती थी, लेकिन आज ऐसा नहीं है सब कुछ बदल गया है। सच कहा जाय तो पूंजीवाद इस कदर हावी हुआ है कि पूरी सिस्टम की निष्पक्षता शब्द अब केवल डिक्शनरी की बन कर रह गई है।

अब प्रश्न उठता है कि क्या आज मीडिया निष्पक्ष पत्रकारिता करता है? तो कहा जा सकता है कि जो समाचार पत्र और न्यूज चैनल सरकारी व अन्य विज्ञापन पर चलते हैं तो वह निष्पक्ष कैसे हो सकते है। एक तरह से कहा जाय तो सरकार और अन्य के विज्ञापन के चक्कर में निष्पक्षता तो छोड़ ही चुके है। लेकिन वहीं कुछ ऑनलाइन न्यूज पोर्टल अभी भी निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें दबाने की करवाई की जा रही है।

वर्तमान समय में जो सही पत्रकार है, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है। क्योंकि वे आज भी सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं और उन्हें बड़े शहरों में बमुश्किल से 15-20 हजार रुपये मिल पाते हैं, जिससे इस महंगाई के युग में उनका घर खर्चा तक नहीं चल पाता है। लेकिन ठीक इसके विपरीत दूसरी ओर हर दिन एक नया नैरेटिव बेचने वाले समाज को “भ्रमित करने वाला धंधा” खूब जोर-सोर से चला रहे हैं। मीडिया हाउस को अब बुद्धिजीवी पत्रकारों की आवश्यकता नहीं है बल्कि उन्हें धंधेबाज लोगों की आवश्यकता है, ताकि ऐसे लोग कमाई कर मीडिया हाउस को भी दें और खुद भी रखें। ऐसी स्थिति में एक श्रमजीवी पत्रकार कैसे अपना जीवन जी सकता है। कुछ तो ऐसा होना चाहिए ताकि श्रमजीवी पत्रकारों की आजीविका सुनिश्चित हो सके।

भारत मे कई चैनल्स है और लगभग सवा लाख पत्र पत्रिकाएं भी हैं। इनमें राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कितने हैं? यह सोचनीय विषय है। इसलिये पत्रकारों के लिए निष्पक्ष होकर जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में, कुछ दोषी पत्रकारों के कारण अच्छे, सच्चे और ईमानदार पत्रकारों की छवि खराब हो रही है और उनके कार्य करने में बाधा उत्पन्न हो रही है। कोरोना काल के समय से पूरे देश में, बगैर आर. एन. आई के दैनिक समाचार पत्र, साप्ताहिक समाचार पत्र, पाक्षिक समाचार पत्र, ई-समाचार पत्र या न्यूज चैनल आदि चलाया जा रहा हैं। इतना ही नहीं छद्धम पत्रकारों की बाढ़ सी आ गई है और इसके कारण ऐसे पत्रकार प्रेस के नाम पर ब्लैकमेलिंग करने का धंधा खूब चला रहा है। जाली प्रेस आईडी लेकर, पत्रकार की जाली नियुक्ति पत्र लेकर, प्रेस के नाम पर ब्लैकमेलिंग करने का धंधा फल-फूल रहा है। जिस पर पत्रकारों के हित के लिए अंकुश लगना अत्यावश्यक है।

ऐसे देखा जाय तो, मनुष्य का स्वभाव ही होता है कि, वह पहले अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है और ऐसे पत्रकार सही मायने में पत्रकार नहीं हो सकते हैं। क्योंकि हकीकत में पत्रकारिता रोजगार नहीं है बल्कि एक उपाधि है, जो खुद से पहले देश हित के बारे में विचार करता है।

खुली अर्थव्यवस्था ने समाचार पत्र को उत्पाद (प्रोडक्ट) बना दिया है। पाठक अब समाचार पत्र के पाठक नही रहे। अब अवमूल्यन होकर पाठक को ग्राहक कहा जाने लगा है। पहले किसी भी समाचार पत्र के संपादक विद्वान और अनुभवी व्यक्ति होता था, उसके नाम से समाचार पत्र की पहचान होती थी। संपादक और पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीक होते थे, फोटोग्राफर जीवंत फोटो लेते थे। समाचार पत्र में छपी खबर का उल्लेख देश के संसद और राज्य के विधान सभा में होता था। अब स्थिति बदल चुकी है, समाचार पत्र में छपे समाचार पर अब संसद या विधान सभा में चर्चा नहीं होता है क्योंकि छपे समाचार पर विश्वास करना कठिन हो गया है।समाचार पत्र में अब अक्सर पेड न्यूज रहता है। अब वह सब कुछ छपने लगा है जो वास्तव में पत्रकारिता होती ही नहीं है।

निष्पक्ष पत्रकारिता का अर्थ ही होता है कि पत्रकार किसी भी समाचार का लॉजिकल तर्क दोनों तरफ का जनता तक पहुँचाये और उसमें पत्रकार के खुद के विचार की बू नहीं आने दे। जबकि आज के पत्रकार बोलने की कला प्रदर्शित करते है लेकिन इस कलाकारी में ख़बरों की तथ्य ही गायब हो जाती है। उसी तरह लिखने में भी सभी बातों को लिखते है लेकिन एक तरफा पक्ष को ही लिखते है। पत्रकारिता में भी अब व्यवसाय ने अपनी प्रबलता स्थापित कर दी है। पत्रकारिता का यह बदलता हुआ स्वरूप नकारात्मकता को अपनी तरफ खींच रहा हैं, कहीं न कहीं सब लोग इसे महसूस कर रहे हैं। अब तो ऐसी स्थिति हो गई है कि अगर आपको राज्य ब्यूरो या संपादक बनना है तो संस्थान आपके विज्ञापन लाने या वार्षिक लाभ देने की बात करते है।

पत्रकारिता में पहले स्वतंत्रता रहती थी लेकिन अब स्वतंत्रता एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस तरह की चुनौती केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के पत्रकारों को करना पड़ रहा है। वैसे भी इस क्षेत्र में चुनौतियों का सिलसिला कोई नई बात नहीं है। नैतिक पत्रकारिता करना आज के परिवेश में बड़ी समस्या बन गई है, जिसके कारण कई खबरें या तो दब जाती है या फिर उसे दबा दिया जाता है।

अब वह समय आ गया है कि पत्रकारों को चाहिए कि वे न केवल निष्पक्ष तरीके से मुद्दों को देखें बल्कि एक निष्पक्ष रवैया भी अपनाएं, ताकि कहानियों को तर्कसंगत और शांत तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।

फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करने की पहल शुरु की है सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय। उनका कहना है कि रजिस्टर्ड हो या जो टीवी/रेडियो सूचना प्रसारण मंत्रालय से रजिस्टर्ड हो, उसी के द्वारा पत्रकार/संवाददाता की नियुक्ति की जा सकती है और केवल उसका सम्पादक ही प्रेस कार्ड जारी कर सकता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि इंटरनेट पर चल रहे न्यूज पोर्टल के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान सूचना प्रसारण मंत्रालय में नहीं है और कोई भी न्यूज पोर्टल या केवल (डिश) टीवी पर चल रहे समाचार चैनल, किसी भी तरह के पत्रकार की नियुक्ति नहीं कर सकता है, और न ही प्रेस आईडी जारी कर सकता है। उन्होंने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह अवैध है और उसके विरुद्ध कार्रवाई निश्चित रूप से होगी।
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