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समरसता श्री वंदन, गौतम बुद्ध उपदेशों में

समरसता श्री वंदन, गौतम बुद्ध उपदेशों में

धर्म कर्म आध्यात्मिक क्षेत्र,
नर नारी महत्ता सम ।
जाति विभेद उन्मूल सोच,
मानव सेवा परम धम्म ।
क्रोध घृणा द्वेष अनुचित,
नेह समाधान उग्र आवेशों में।
समरसता श्री वंदन,गौतम बुद्ध उपदेशों में ।।


सम्यक दृष्टि संकल्प वचन,
कर्म आजीविका परम पद ।
व्यायाम स्मृति समाधि संग ,
उपमित आष्टांगिक मार्ग विशद ।
शब्द अभिव्यंजना सदा शुभ,
प्रयोग अभिव्यक्ति भाव प्रदेशों में ।
समरसता श्री वंदन,गौतम बुद्ध उपदेशों में ।।


चिंतन मनन सोच विचार,
भावी जीवन निर्धारक बिंदु ।
अवांछितता परिणाम विपरित,
नैतिकता सह अमिय सिंधु ।
अहिंसा करुणा भाव अद्भुत ,
अभिलाषा विजय भव संवेशों में ।
समरसता श्री वंदन,गौतम बुद्ध उपदेशों में ।।


मृदुल मधुर सार्थक संबंध हित,
आत्म मंथन ज्ञान अहम ।
सुख समृद्धि कारक निजता
बाह्य घटक सामंजस्य पैहम।
सकारात्मकता प्रगति मूल मंत्र,
सिद्धार्थ प्रेरणा पुंज संदेशों में ।
समरसता श्री वंदन,गौतम बुद्ध उपदेशों में ।।


महेन्द्र कुमार(स्वरचित मौलिक रचना)


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