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मतदाता भगवान चित्रगुप्त होते हैं.

मतदाता भगवान चित्रगुप्त होते हैं.

गिरीन्द्र मोहन मिश्र:
मतदाता भगवान चित्रगुप्त होते हैं. किसी भी राजनीतिक पार्टी, दल का पाँच साल का क्रिया- कलाप, चाल - चरित्र का लेखा- जोखा चुनाव में करते हैं, उसके कर्मों का गुप्त चित्रण अपने गुप्त मतदान से करते हैं. क्यों उसे सत्ता दिया गया था और उसने क्या किया, क्यों उसे विपक्ष में बैठाया गया था और उसने अपनी भूमिका कैसे अदा किया. कितना शांति दिया, सुकून दिया, कितना अशांति दिया, पीड़ा दिया. कितना झूठ बोला, कितना झूठ फैलाया,कितना नफ़रत फैलाया, कितना धर्म को बदनाम किया, कितना जुमला बोला, कैसे प्रजातंत्र को एकल तंत्र में तबदील किया, कैसे परिवारवाद को व्यक्तिवाद में बदल दिया, कैसे मुद्दा को मुर्दा बना दिया वगैरह वगैरह...
बढ़ती महंगाई, शिक्षा का दुर्दशा, बेरोजगारों का फौज़,जाति और भाई -भाई में नफ़रत का प्रवाह , एजेंसी का दुरुपयोग, डर- दंड - फंड का इस्तेमाल, भ्रष्टाचारियों को शरण देकर महिमा मंडित करना और उच्च पद पर आसीन करना, जनता के समस्या को लेकर सड़क पर नहीं आना, सरकार से सवाल नहीं करना, सवाल करने वाले को देश द्रोही के श्रेणी में लाना, समाचार पत्रों पर अघोषित प्रतिबंध इत्यादि...

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