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कुछ दूर तुम्हें भी चलना है !

कुछ दूर तुम्हें भी चलना है !

===(अर्चना कृष्ण)
कुछ दूर तुम्हें भी चलना है,
कुछ दूर मुझे भी चलना है,
इस अल्पसमय पगडंडी पर,
क्या एक दूजे को छलना है ।
कुछ दूर सफर के मेले में
धक्का-मुक्की ,क्या उठा-पटक?
इस जीवन के चौराहे से,
लो कट जाने दो एक सडक !
यह पथ मंजिल तो कभी नहीं,
यह मःजिल तो गंतव्य नहीं !
क्या वस्तु उठाए चलते हैं,
रूक कर सोचें ना कभी कहीं ।
इस चौराहे के चौतरफा,
सामान उठाये भाग रहे ।
मानो अमृत का कलश -भाग,
लेने को सब अनुराग रहे ।
सब यहीं छोडकर चलने पल
आँखो में अविरल धार लिए,
सोचा करते हैं जीवन पल, क्या करना था,क्या काम किए।
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