हमार सइयाँ
श्री मार्कण्डेय शारदेयहमरो सइयाँ अवतारी बा।
लाचारी ब्रह्मचारी बा।
झूठ-कपट से दूर रहेला,
बाकिर बोलल जारी बा।।
लोगन खातिर जीयेके मन,
बाकिर घर-परिवारी बा।
लूट-खसोट न जाने तनिको,
फिर भी बड़ भंडारी बा।
संन्यासी अस मन निस्पृह बा,
हाथे झोरा भारी बा।
हिंसक भाव कभी ना आइल,
दूनो हाथे आरी बा।
लूर भले ना कवनो सुबहित,
तबहूँ बड़ व्यापारी बा।
ना जाने कवना गुनाह पलोगन के मुँह गारी बा।
लाचारी ब्रह्मचारी बा।
झूठ-कपट से दूर रहेला,
बाकिर बोलल जारी बा।।
लोगन खातिर जीयेके मन,
बाकिर घर-परिवारी बा।
लूट-खसोट न जाने तनिको,
फिर भी बड़ भंडारी बा।
संन्यासी अस मन निस्पृह बा,
हाथे झोरा भारी बा।
हिंसक भाव कभी ना आइल,
दूनो हाथे आरी बा।
लूर भले ना कवनो सुबहित,
तबहूँ बड़ व्यापारी बा।
ना जाने कवना गुनाह पलोगन के मुँह गारी बा।
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